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अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बावजूद एफआईआई ने पिछले 10 सत्रों में भारतीय इक्विटी में 3 अरब डॉलर का निवेश किया

विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने पिछले 10 सत्रों में करीब तीन अरब डॉलर मूल्य के भारतीय शेयर खरीदे हैं जबकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने मुद्रास्फीति से निपटने के लिए नीतिगत दरों में बढ़ोतरी की है।

एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार एफआईआई ने 20 अक्टूबर से दो नवंबर के बीच भारतीय इक्विटी में 2.74 अरब डॉलर की खरीदारी की। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के आंकड़ों के मुताबिक नवंबर में अब तक एफआईआई ने भारतीय बाजारों में 6,160.11 करोड़ रुपये का निवेश किया है।

देश में बढ़ती मुद्रास्फीति से निपटने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि के बावजूद एफआईआई की लिवाली हुई है। 2 नवंबर को, फेड के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने लगातार चौथी बार 75 आधार अंक ब्याज दर वृद्धि की घोषणा की। बेंचमार्क फेडरल फंड रेट अब 3.75% से 4% की सीमा में है।

पॉवेल ने मंदी की बढ़ती आशंकाओं के बीच केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों पर अधिक उदार दृष्टिकोण की ओर बढ़ने की किसी भी उम्मीद को भी खारिज कर दिया। हालांकि, अमेरिकी फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) ने संकेत दिया कि केंद्रीय बैंक आगे चलकर ब्याज दरों में बढ़ोतरी की मात्रा को कम करेगा।

ऐसे में एफआईआई को भारतीय इक्विटी बाजारों की ओर क्या आकर्षित कर रहा है?

अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में तेजी के बाद घरेलू बाजार पॉजिटिव हो गए हैं। सात नवंबर को बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स ने 61,000 अंकों का प्रमुख स्तर फिर से हासिल किया, जबकि निफ्टी ने 18,000 अंकों का आंकड़ा छुआ।

सकारात्मक वैश्विक संकेतों, एफआईआई की लिवाली और मजबूत घरेलू फंडामेंटल से भारतीय बाजारों में तेजी आई।

घरेलू कंपनियों के सितंबर तिमाही के मजबूत नतीजों और प्रमुख वृहद संकेतकों में अनुकूल वृद्धि से उम्मीद बढ़ी है। इस बीच, अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में बढ़ोतरी की गति धीमी पड़ने की उम्मीद बाजार के लिए अच्छा संकेत है। इन सबके चलते भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशकों की वापसी हुई होगी।

वैश्विक अनिश्चितता के बीच भारत के मैक्रोइकोनॉमिक फंडमेंट्स ने लचीलापन दिखाया है। सितंबर में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) 7.9 प्रतिशत बढ़ा, जबकि विनिर्माण पीएमआई अक्टूबर में मामूली रूप से बढ़कर 55.3 प्रतिशत हो गया। अक्टूबर में जीएसटी संग्रह 1.52 लाख करोड़ रुपये के साथ दूसरे सबसे अधिक आंकड़े पर पहुंच गया।

एक अन्य कारक जो भारत के लिए अच्छा हो सकता है वह यह है कि यह मंदी की आशंकाओं से अपेक्षाकृत बचा हुआ है। भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद भारत चालू वित्त वर्ष में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2022-23 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 7.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

मजबूत वृहद आंकड़ों और अच्छी आय वृद्घि के दम पर विदेशी निवेशकों को आगे चलकर भारतीय इक्विटी जगत में अच्छी स्थिति मिल सकती है।

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